जब भी भारत देश को अंग्रेजो से आज़ादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की बात होती है तो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का नाम सबसे पहले लिया जाता है.
क्योंकि उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक देश को आज़ादी दिलाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गाँधी जी ने देश के हित के लिए कई आंदोलन किये लेकिन कभी हिन्सा का सहारा नही लिया,उन्होंने हमेशा सत्य और अहिंसा का साथ दिया.
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महात्मा गाँधी जी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay in Hindi)

गाँधी जी की यही विशेषता उनको दूसरे स्वतंत्रता सैनानियों से अलग बनाती है.ऐसे महान व्यक्ति को आज भी हमारा देश याद करता है और उनके देश हित में किये गए प्रयासों को सलाम करता है.
इस लेख में महात्मा गाँधी पर निबंध लिखा गया जो आपके लिए परीक्षा के दृष्टिकोण से तो उपयोगी है ही साथ ही गाँधी जी के द्वारा देश की आज़ादी के लिए दिए गए उनके महत्वपूर्ण योगदान और प्रयासों से रूबरू करवाएगा.
महात्मा गाँधी का शुरुआती जीवन और परिवार
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है,उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था.गाँधी जी के पिता जी का नाम करमचंद गाँधी है.
और माँ का नाम पुतलीबाई है.गाँधी जी के पिता करमचंद गाँधी राजकोट में एक दीवान के पद पर कार्यरत थे और उनकी माँ पुतलीबाई अपने सम्पूर्ण जीवन में धार्मिक विचारधाराओं से जुड़ी रही.
गाँधीजी अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे उनके दो बड़े भाई और एक बहन भी थी.गाँधी की शादी मात्र 13 वर्ष की आयु में भातीय रीतिरिवाज के अनुसार कस्तूरबा गाँधी के साथ हुई. उ
न्होंने अपनी शुरुआती पढाई राजकोट से की और 1887 में मैट्रिक पास करने के बाद गांधीजी वक़ालत की पढाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए.
इंग्लैंड से वकालत की पढाई करने के बाद गांधीजी 1891 में वापस भारत लौटे.भारत वापस लौटने के बाद उन्होंने बॉम्बे उच्च न्यायालय और राजकोट में वकालत की.
भारतीय स्वतंत्रता के लिए गांधीजी के महत्वपूर्ण आंदोलन
गाँधी जी के आंदोलकारी विचारो की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका में उनके साथ हुई घटना से शरू हुई थी.दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में एक गुजराती व्यापारी रहते थे,
उनको एक केस लड़ने के लिए ऐसे वकील की जरुरत थी जो गुजराती और अंग्रेजी दोनों भाषा जानते हो.उन्होंने गांधीजी से संपर्क किया और उनको दक्षिण अफ्रीका बुला लिया.
दक्षिण अफ्रीका में एक साल रहने के दौरान गाँधी जी को होटल,रेल और कई सार्वजनिक स्थानों पर अफ़्रीकी सरकार के द्वारा ऐसे बर्ताव किए जिनकी वजह से गाँधी जी के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंची.
एक दिन जब वो 7 जून 1993 को केस के सिलसिले में प्रथम श्रेणी के टिकट के साथ डरबन से प्रिटोरिया के लिए रेल में सफर के दौरान उनको सामान के साथ नीचे फेंक दिया गया यही से महात्मा गांधीजी के आंदोलनकारी व्यक्तित्व की शुरुआत हुई.
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी लगभग २० साल तक रहे और वहाँ प्रवासी भारतीयों के साथ सरकार के द्वारा किये जा रहे अत्याचार के खिलाफ कई आंदोलन का नेतृत्व किया.
दक्षिण अफ्रीका में अपने लम्बे प्रवास के बाद गाँधी जी 1915 में गोपाल कृष्ण गोखले के द्वारा आमंत्रित करने के बाद भारत वापस लौटे.भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलनों की नींव रखी
चम्पारण सत्याग्रह आंदोलन – महात्मा गाँधी के द्वारा 1917 में बिहार के चम्पारण में नील की खेती करने वाले स्थाई किसानों के साथ मिलकर उनके साथ ब्रिटिश सरकार के द्वारा किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ उन्होंने पहला सत्याग्रह आंदोलन किया था.
खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन– 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले के किसानो के साथ मिलकर गाँधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन किया था जिसका उद्देश्य बाढ़ से पीड़ित किसानो से ब्रिटिश सरकार के द्वारा वसूले जा रहे कर के खिलाफ था.गाँधीजी के नेतृत्व वाला यह आंदोलन सफल रहा और ब्रिटिश सरकार को किसानो का कर माफ़ करना पड़ा.
असहयोग आंदोलन – जालियाँवाला बाग़ हत्याकांड के बाद 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की जिसका मुख्य उद्देश्य था शांतिपूर्ण और अहिंसा के तरीके से अंग्रेजी सरकार का असहयोग करना लेकिन चोरी चोरा की घटना के बाद गाँधीजी के द्वारा 1922 में इस आंदोलन को वापस ले लिया गया.
सविनय अवज्ञा आंदोलन – 1930 में गाँधी जी के द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया जिसका उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारतीय लोगों के ऊपर लगाए प्रतिबन्ध और कानूनों का विनम्रता के साथ विरोध करना.
गाँधीजी ने अपने आश्रम के सदस्यों के साथ 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से अहमदाबाद से 241 किलोमीटर दूर पश्चिमी तट पर बसे एक गाँव में जाकर नमक बनाया और नमक कानून का विरोध किया.इसके बाद कई कानूनों की सविनय के साथ अवज्ञा की गयी.
भारत छोड़ो आंदोलन – द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस के मुंबई में हुए अधिवेशन से गाँधीजी और कांग्रेस के नेताओ ने मिलकर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की.
इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश हुकूमत को भारत से जड़ से उखाड़ फेकना.इस आंदोलन ने एक बड़ा रूप लिया और भारी मात्रा में लोगों ने इस आंदोलन का समर्थन किया.
महात्मा गाँधी की हत्या
महात्मा गाँधी 30 जनवरी 1948 को बिड़ला भवन में श्याम के समय प्रार्थना के लिए जाते वक्त नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी और 78 वर्ष की उम्र में गाँधीजी इस दुनिया से चले गए लेकिन देश की आज़ादी के लिए उनका योगदान और त्याग हमेशा लोगो के दिलो में ज़िंदा रहेगा.
उपसंहार
महात्मा गाँधी के द्वारा सत्य और अहिंसा के साथ किये गए बड़े-बड़े आंदोलनों ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व को ये सन्देश दिया कि बिना हथियारों और लड़ाई झगड़े के भी बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती जा सकती है.हमें सदैव अपने जीवन में लड़ाई झगड़े,रंग-भेद,ऊँच -नीच जैसी भावनाओं से ऊपर उठकर गाँधी जी के विचारो पर चलना चाहिए तभी गाँधीजी के भाईचारे के विचारो को हम ज़िंदा रख पाएंगे.
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