इस ब्लॉग में हम आपको बताएँगे Atishyokti Alankar Ke Udaharan के बारे में। पर उससे पहले हम आपको अलंकार के बारे में जानकारी देंगे।
Alankar Kise Khte Hain?
अलंकार एक ऐसा शब्द है जो वाक्य के आकर्षण को बढ़ाता है। अलंकार अलम और कार शब्दों से बना है। यह सजावट को दर्शाता है। इनका उपयोग शब्दों को सुशोभित करने के लिए किया जाता है। इससे भाषा का आकर्षण बढ़ता है।
Alankar Kitne Prakar Ke Hote Hain?
अलंकार किसे कहते हैं जानने के बाद अब हम जानेंगे इसके प्रकार के बारे में। अलंकार दो प्रकार के होते हैं।
- शब्दालंकार
- अर्थालंकर
शब्दालंकार: यह शब्द +अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है। वाक्पटुता में शब्दों का प्रयोग वाक्यों में चमत्कार पैदा करता है, लेकिन शब्दों के पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग इन चमत्कारों को नष्ट कर देता है। अर्थात् वाक्य में शब्दों के प्रयोग से वाक्य का सौन्दर्य बढ़ता है, परन्तु उन शब्दों के समानार्थक शब्दों के प्रयोग से वाक्य का सौन्दर्य कम हो जाता है, जिसे शब्दालंकार कहते हैं।
अर्थालंकर: अर्थलंकार वहाँ है, जहाँ एक वाक्य के अर्थ के माध्यम से चमत्कार किए जाते हैं। तीन प्रकार के होते हैं।
Atishyokti Alankar Kya Hai?
अतिशय + उक्ति से मिलकर बना है अतिशयोक्ति शब्द। अतिशय का मतलब होता है बहुत अधिक और उक्ति का मतलब होता है कह दिया। जब किसी बात को बढ़ा चढ़ाकर बोला जाता है तब वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
Atishyokti Alankar Ke Udaharan
हमने अतिशयोक्ति अलंकार के बारे में तो जान लिया। अब हम जानेंगे Atishyokti Alankar Ke Udaharan के बारे में। Atishyokti Alankar Ke Udaharan कुछ इस प्रकार हैं :
- छाले परिबे के उरनि, सकै न हाथ छुवाई |
झिझकति हिया गुलाब कै, झंझावत पाय ।।
- बाँधा था विधु को किसने इन काली ज़ंजीरों में
मणिवाले फणियों का मुख क्यों भरा हुआ है हीरों से।
- हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग।
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग
- देख लो साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही ।।
- दादुर धुनि चहुँ दिशा सुहाई।
बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।
- परवल पाक, फाट हिय गोहूँ।
- धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर बाण |
धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के प्राण।
- छाले परिबे के उरनि, सकै न हाथ छुवाई |
झिझकति हिया गुलाब कै, झंझावत पाय ।।
Anya Atishyokti Alankar Ke Udaharan
- आगे नदिया पड़ी अपार, धोड़ा कैसे उतरे पार
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ।।
- मैं बरजी कैबार तू, इतकत लेती करौंट।
पंखुरी लगे गुलाब की, परि है गात खरौंट।
- अब जीवन की कपि, आस न कोय ।
कनगुरिया की मुंदरी कँगना होय ॥
- कढ़त साथ ही म्यान तें, असि रिपु तन ते प्रान
- देखि सुदामा की दीन दशा करुना करिके करुना निधि रोए।
- चंचला स्नान कर आये, चन्द्रिका पर्व में जैसे।
उस पावन तन की शोभा, आलोक मधुर थी ऐसे।।
- जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया।
असमर्थ हो उसके कथन में मौन वाणी ने लिया ।।
- जुग उरोज तेरे अली ! नित-नित अधिक बढ़ायँ ।
अब इन भुज लतिकान में, एरी ये न समायँ ।
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